Ancient History Of India In Hindi [प्राचीन भारत का इतिहास]

Ancient History Of India In Hindi [प्राचीन भारत का इतिहास]

दोस्तों आज के समय में प्राचीन भारत (Ancient History Of India In Hindi) को जानना बहुत ही जरुरी है। उसको जानने के लिए हमें Source Of Ancient Indian History को गहराई से देखना पड़ेगा। तो चलिए एक-एक करके जानते हैं कि  प्राचीन भारत को जानने के क्या स्रोत हैं ? सबसे प्राचीन ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ है।
ऋग्वेद, सबसे प्राचीन वेद है इसमें कुल मिलाकर 10 मंडल 1028 सूक्त है। वैदिक साहित्य के बाद शतपथ ब्राह्मण आता है इसमें कर्मकांडों की जानकारी मिलती है। उपनिषदों की संख्या 12 है वेदांग 6 है।

प्राचीन भारत के इतिहास के  स्रोतों को मुख्य रूप से दो भागो में विभाजित किया गया है :-

  1. पुरातात्विक स्रोत [Archeological  sources ]
  2. साहित्यिक स्रोत [literary  sources]

(1) पुरातात्विक स्रोत [Archeological sources ] :-

विभिन्न  पुरास्थलों से  खुदाई के दौरान प्राप्त पुरावस्तुओं के आधार पर यह कहा   जा सकता है की पुरातात्विक अवशेष कितनी भिखरी पड़ी है अर्थात अधिक मात्रा में उपलब्ध है। पुरातात्विक वस्तुएँ हमारे लिए महत्वपूर्ण स्रोत है क्योंकि ये स्रोत विश्वसनीय तथा सही जानकारी उपलब्ध करते हैं। पुरातात्विक स्रोत विस्वास तथा पूर्वाग्रह से स्वतंत्र होती है तथा उनकी तिथि भी सही -सही निर्धारित  सकता है।
पुरातात्विक    स्रोतों को निम्नलिखित वर्गों में वभाजित किया जा सकता है – By- Source Of Ancient Indian History
  • स्मारक /भवन [monuments]
  • अभिलेख [Inscription]
  • सिक्के [Coins]
  • मुहर [Seal]
  •  मृदभांड /बर्तन [Patterty]
  •  उत्खनन से प्राप्त वस्तुवें [Material obtained from excavation]
  • कला तथा स्थापत्य [Art &Sclupture]

(१) स्मारक /भवन [monuments] :- By- Source Of Ancient Indian History

स्मारक के अंतर्गत सभी प्रकार  भवन ,राजमहल ,मंदिर, स्तूप ,विहार, मूर्तियाँ, इमारतें पत्थर कि गुफाएं इत्यादि शामिल हैं। 

हड़प्पा का स्नानागार तथा स्नानागार ,गुप्त कल  मंदिरें ,मौर्य राजमहल ,अशोक का स्तंभ, स्तूप तथा बोधगया के स्तूप इत्यादि अंतर्राष्ट्रीय महत्वा के प्राचीन स्मारक हैं। इन स्मारकों के राजनितिक इतिहास निर्माण में बहुत ज्यादा योगदान तो नहीं लेकिन ये स्मारक तत्कालीन भारत की धार्मिक ,आर्थिक तथा संस्कृतिक पद्धति विकास की महत्वपूर्ण जानकारी देती है। 

Ancient History Of India In Hindi
source of ancient Indian history

(२) अभिलेख[Inscription]:- By- Source Of Ancient Indian History

प्राचीन भारत के इतिहास के पुनर्निर्माण में अभिलेख अति महत्वपूर्ण है। समकालीन इतिहास लेखन सामग्री के अभाव रहने पर ये अभिलेख राजनितिक इतिहास को जानने के प्रमुख साधन

हैं। अभीकेख कई तरह के होते हैं जैसे- गुफा अभिलेख , स्तम्भ अभिलेख , शिलालेख, ताम्रअभिलेख , मुहरों पर अभिलेख आदि सम्मिलित हैं। इनमें से अधिक अभिलेख संस्कृत तथा प्राकृत भाषा  में लिखे गए हैं। अधिकतर अभिलेखों में तिथियां भी उत्कृण किये गए हैं। अतः स्पष्ट है कि हम शासकों के शासन कल के बारे में  तथा प्रमुख घटनाओं को अभिलेखनो के माध्यम से आसानी से जान सकते हैं।

उद्धरण स्वरुप – अशोक के शासन काल तथा प्रमुख घटनाओं की व्याख्या उनकी शिलालेखों तथा स्तम्भों के अधार  पर किया गया है। इतिहासकार आर. जी. भण्डाकर ने अशोक का इतिहास उसके अभिलेख के आधार पर किया है। इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख या प्रयाग प्रसस्ति में गुप्त शासक चन्द्रगुप्त के विजयों की जानकारी प्राप्त होती है। यदि हाथी – गुफा  अभिलेख की खोज नहीं हो पाति तो हम कलिंग के महान  शासक खारवेल की जानकारी नहीं प्राप्त कर पते। 

अभिलेख हमें किसी राजा के साम्राज्य के  सटीक जानकारी प्रदान करती है क्योंकि राजा अपने साम्राज्य की सीमा में ही अभिलेख अथापित करता था। इतना हीउ नहीं प्राचीन काल में बहुत सारे अभिलेखों से हमें उस काल के सामाजिक , आर्थिक , धार्मिक, तथा सांस्कृतिक जीवन के बारे में भी पता चलता है।कई अभिलेख हमें विदेशों से प्राप्त होतीं हैं जो प्राचीन भारत पर विशेष प्रकाश डालती है।
सामान्यतः ऐसे अभिलेख हमें ईरान ,इराक तथा दक्षिण- पूर्व एशिया से प्राप्त हुए हैं। मध्य एशिया से प्राप्त अभिलेख ‘बोगज’कोई 1400 B.C. पुराण है। यह सबसे पुराने अभिलेखों मेसे एक है जो वैदिक देवताओं की जानकारी देता है। 
 
(३) सिक्के [Coins]:- By- Source Of Ancient Indian History
सिक्के के अध्ययन के विज्ञान को ‘NUMASMATIC’ कहा जाता है। सिक्के प्राचीन इतिहास पुनर्लेखन में बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारत में सबसे पहले 600 B.C. में सिक्के जारी किये गए थे। इन सिक्के को आहात सिक्के कहा जाता था। इसके बाद ही भारत के विभिन्न भागों में अन्य राजाओं द्वारा प्राचीन सिक्के ढाले गए। तथा उनको प्रचलित किया गया। प्राचीन सिक्के सोना , चंडी ,ताम्बे तथा शीशे जैसे धातुओं से बनाये गए थे।
निम्न प्रकार के सिक्के का मिलना इस बात को प्रकट करता है कि उस राज्य की आर्थिक दसा ख़राब रही होगी। तमिलनाडु के ‘अरिकमेडु’ नमक स्थान से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं। इससे यह पताचलता है कि भारत उस समय रोम के साथ आर्थिक विनिमय करता था और व्यापर का समंध उन्नत अवस्था में था। सिक्की किसी घटना के तिथि निर्धन करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। गुप्त शासकों ने तिथि वाले सिक्के जारी किये थे।
साथ ही सिक्कों से हम किसी राजा की साम्राज्य के सीमा तथा उस कल के सामाजिक , सांस्कृतिक एम् धार्मिक दसा के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। भारत में शासन करने वाले इंडो-ग्रीक , शक तथा अन्य विदेशी राजाओं की जानकारी हमें सिक्कों से मिलती है।
 
(४) मुहर [seal]:- By- Source Of Ancient Indian History
ताम्बा , पत्थर तथा मिट्टी से बानी मुरारेंप्राचीन भारत के इतिहास जाननेका प्रमुख साधन है। सिंधु घाटी सभ्यता के छेत्र सेप्राप्त 2000 से  अधिकमुहरों से हमें हड़प्पाके लोगों के धार्मिक विकासकी जानकारी मिलती है। बिहार स्थित वैशाली से 274 मुहरें मिली है जो उसकाल  केआर्थिक जीवन, व्यापार तथा श्रेणी वेवस्था पर विस्तृत प्रकाशडालते हैं। मुहरों पर लिखी गईतिथि से किसी घटनाके कालक्रम को निर्धारित करनाआसान होता  है। 200 B.C.से 200 A.D के कालक्रम इतिहास सिक्कों के आधार परलिखा गया है। क्योंकि इस काल केअन्य स्रोतों का अभाव हमेंदेखने को मिलता है।
                         
(५) मृदभांड /बर्तन[Patterty]:- By- Source Of Ancient Indian History
प्राचीन भारतीय पुरास्थलों की खुदाई सेविभिन्न प्रकार की बड़े पैमानेपर बर्तन मिले हैं। प्रारम्भ में लोग मिटटी का बर्तन काप्रयोग करते थे। यद्यपि बाद में अन्य धातुओं का बर्तन अस्तित्वमें आया। 1500 B.C.-500 B.C. तक कल मेंकाले तथा लाल मृदभांड अंकारजी  खेड़ाकी खुदाई से प्राप्त हुएहैं। चित्रित धूसर मृदभांड 1000 B.C. के काल मेंपुयोग  कियेजाते थे।
 
(६) उत्खनन से प्राप्त वस्तुवें [Patterty]:- By- Source Of Ancient Indian History
उत्खनन से प्राप्त वस्तुवेंहमें प्राचीन काल के बारे मेंविस्तृत जानकारी  देतेहैं। रेडियो कार्बन डेटिंग विधि द्वारा उत्खनन से प्राप्त वस्तुओंका काल क्रम निर्धारित किया जा सकता है।उत्खनन से हम लोगोंके धन , अर्थवयस्था तथा सांस्कृतिक के बारे मेंजानकारी कर सकते हैं।उत्खनन द्वारा हम किसे सभ्यताका निर्धारण कर सकते हैं।प्राग इतिहास तथा हड़प्पा सभ्यता की जानकारी उत्खननसे प्राप्त वस्तुओं के आधार परही संभव हो पाया है।
 
(७)कला तथा स्थापत्य [Art &Sclupture]:- By- Source Of Ancient Indian History
ये स्रोत प्राचीनभारत के लोगों केसंस्कृतिक उपलब्धियों की जानकारी देताहै। लेकिन इसके आलावा ये स्रोत लोगोंके सामाजिक तथा धार्मिक जीवन पर विस्तृत प्रकाशडालता है। मंदिर के दीवारों परबनाये गए चित्र तथास्थापत्य हमें उस काल के वेश – भूषा [वस्त्र], बाल बनाने की कला , आभूषण, आवागमन के साधन केबारे में बतलाता है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिलेमें स्थित अजन्ता तथा एलोरा की चित्रकला गुप्तकाल में काल के विकास परविस्तृत जानकारी देता है।  उत्खननसे प्राप्त मूर्तियां लोगों के धार्मिक जीवनके साथ अनेक रहन सहन को भी दर्शाताहै।
Ancient History Of India In Hindi
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(2) प्राचीनभारतीय इतिहास को जानने केसाहित्यिक स्रोत

प्राचीनकाल में लिखे गये अधयात्मिक ग्रन्थ महाकाव्य उपन्यास , व्याकरण इत्यादि इतिहास पूर्ण रूप से ऐतिहासिक ग्रन्थतो नहीं है लेकिन इतिहासकी बहुत सारी बातें इसमें खोजी जा सकती है।प्राचीन भारतीय ग्रंथो में कल्हण दवारा रचित ‘राजतरंगिनी ‘ ही एकमात्र रचनाहै जिसे हम इतिहास ग्रन्थकह सकते हैं।
ऐतिहासिकग्रंथो की कमी केकारण इतिहासकारो को गैर इतिहासरचनाओं  परनिर्भर रहना पड़ता है। यदि इतिहासकार सावधानीपूर्वक तथा पूर्वाग्रहण रहित इनका अध्ययन किया जाए तो प्राचीन भारतके इतिहास में वे काफी सहायकप्रतीत होते है।
साहितियकस्रोतों को दो वर्गोंमें मुख्याता वगीकृत किया जा सकता है-
1 धर्मिकस्रोत
2 गैरधार्मिक स्रोत
 
(1) धार्मिक स्रोत :- प्राचीन भारत में मुख्यतः तीन धर्मो का अस्तित्वा था। अतः हम धार्मिक स्रोतों को तीन वर्गों में हम विभाजित कर सकते हैं:-
  • ब्राह्मणया  वैदिकया हिन्दु साहित्य में चार  वेद- (i) ऋग्वेद  (ii) सामवेद  (iii) यजुर्वेदे  (iv) अर्थववेद।
  • जैनसाहित्य
  • बौद्धसाहित्य
  • ब्राह्मणया  वैदिकया हिन्दु साहित्य में चार  वेद- (i) ऋग्वेद  (ii) सामवेद  (iii) यजुर्वेदे  (iv) अर्थववेद।
ब्राह्मण, आरण्यक , उपनिषद , महाकव्य , वेदान , पुराण, इत्यादि। 
वैदिकसाहित्य के कुछ महत्वपूर्णधार्मिक ग्रन्थ है –
चार वेदो में ऋग्वेद सबसे पुराना  है।ऋग्वेदे में कुल 10 मंडल 1028  सुकत  तथा  104620 मंत्रहै। पूर्व वैदिक काल के बारे मेंहमें ऋग्वेदे से ही जानकारी  मिलतीहै। ऋग्वेदे उस काल केधार्मिक , सामाजिक तथा  राजनितिकजीवन पर विस्तृत प्रकाशडालता है। उस काल कीप्रमुख राजनैतिक घटनाएं जैसे दस राजाओं कायुद्ध ,राजनितिक संस्थाये ,सभा तथा समिति ,सामाजिक इकाइयाँ जैसे -कुल ,विश ,ता तथा जनएवं काल के भौगोलिक विस्तारकी चर्चा ऋग्वेदे में की गई है।
इनसाहित्यों से हमें उतरवैदिक काल के लोगों केधर्म ,राजनितिक ,अर्थव्यवस्था ,समाज तथा सस्कृति में हुए परिवर्तन की जानकारी प्राप्तहोती है।यजुर्वेद में लगभग 2000 मंत्र हैं। इसके दवारा हमें यज्ञ तथा उसके विधि विधान आदि की जानकारी प्राप्तहोती हैं।सामवेद में 1810 मंत्र हैं जिसमे संगीत की चर्चा की गई है। 
अथर्ववेद की रचना सबसे बाद में किया गया हैं। जिसमे जनजातीये रीति – रिवाज ,धार्मिक कर्मकांड ,जादू –  टोना तथा औषधियों की चर्चा मिलती हैं। 
ब्राह्मण ग्रंथो की रचना गद्य में की गई हैं। जिसमे आर्यों कइ कर्मकांड का उल्लेख मिलता है। प्रत्येक वेद का अपना  एक ब्राह्मण ग्रन्थ है। कौषीतिकी  तथा ऐतरेय ब्राह्मण  ग्रन्थ    ऋग्वेद से इसी तरह पंचविश सामवेद तथा गोपथ अर्थववेद का ब्रह्मण ग्रन्थ है। 
उपनिषद भी उतर वैदिक काल की रचना है ,जिसका शाब्दिक अर्थ है – गुरु के निकट बैठना। विद्वानों के अनसार उपनिषद ग्रंथो में दार्शनिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान की बातें लिखी गई है ,जो एक शिष्य अपने गुरु के समक्ष बैठकर प्राप्त करता था। 
उपनिषदों की संख्या 108 है जिसमे कैन ,कठ ,माण्डुकय ,छंदगेय ,मैत्रायाणी तथा कोषितिकी  प्रमुख है।आरण्यक ग्रंथो की रचना आरण्यक अथार्त जगंलों में की गई थी तथा इसे जंगलों में पढ़ा जाता था।  आर्य  ग्रन्थ वेदों से साम्नाधित है। कौषीतकि तथा ऐतरेय नमक ग्रन्थ ऋग्वेद से समन्धित है। वेदों को समझने तथा उनकी व्याख्या करने के लिए वैदिक का; के अंतिम चरण में वेदांगीन की रचना की गयी है जो संख्या में छः हैं। 
(१) शिक्षा (२) कल्प (३) निरकत (४) व्याकरण (५) छंद (६) ज्योतिष 
 

शिक्षा की रचना वैदिक ग्रंथों के सही उच्चारण के लिए किया गया था।  पाणनि की प्रशिद्ध रचना अष्टाध्यायी व्याकरण की प्रशिद्ध पुस्तक है। यास्क ने निरक्त की रचना पांचवीं शताब्दी ई. पू. में की थी।  स्मृति ग्रन्थ भी वैदिक साहित्य का भाग है। जिसमे वैदिक आर्यों की कानूनों की सुची  दी हुई है। इन्हें अर्थशास्त्र भी कहा जाता है।

आर्यों के सामाजिक धार्मिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन को समझने में ये ग्रन्थ सहायक सिद्ध होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण स्मृति ग्रन्थ  में से एक मनुस्मृति ग्रन्थ है जिसे 200 B. C.-200 A. D. के बीच  में लिखा गया है। नारद, परासद ,कात्यायन तथा बृहस्पति स्मृति गुप्त काल में लिखे गए हैं। वाल्मीकि तथा व्यास द्वारा महाकाय महाभारत तथा रामायण की रचना की गयी हैं। लेकिन  इन  महाकाव्यों का काल नीरधारण करना कठिन है क्योंकि समय – समय पर परिवर्तन होते रहे हैं। ऐसा माना जाता है की मूल रामायण में 12000 श्लोक थे इसका वर्तमान रूप दूसरी शताब्दी में पूर्ण हुआ। इस तरह महाभारत का सबसे पुराण नाम यव सहिंता है। इसके बाद से ऐसे जय सहिंता केनाम से जाना जाने लगा। महाभारत

की रचना 400 B.C. 400 A.D. के काल  में हुई थी। चूँकि ये दोनों महाकाव्य किसी निश्चित समय काल की नहीं है। अतः एक निश्चित अवधि के इतिहास के पुनर्निर्माण में ये बहुत ज्यादा सहायक नहीं है। परन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उत्तरवैदिक कल तथा उसके बाद के काल विभिन पहलूओं पर प्रकाश डालता है।  वैदिक साहित्य में पुराणों की विशेष महत्वा है जिसकी संख्या 18 है। मार्कण्डेय पुराण , ब्राह्मण पुराण , विष्णु पुराण , भगवत पुराण ,तथा मत्स्य पुराण सबसे प्राचीनतम है। प्राचीन कल में मानव पर शासन करने वाले राजवंशों का वर्णन इसमें किया गया है। साथ  ही यह जनजातीय तथा उनके भारत के विभिन भागों में बस जाने की घटना का भी वर्णन करता  है। यद्यपि पुराण ऐतिहासिक रचना नहीं है अतः पुराणों में वस्तुनिस्टता तथा सत्यता का आभाव मिलता है फिर भी स्रोत के रूप में इसके महत्वा को नाकारा नहीं जा सकता है। 

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  • जैन साहित्य:- By- Source Of Ancient Indian History

प्रचीन इतिहास को जानने में जैन साहित्य की भूमिका काफी महत्वपूर्ण    है क्योंकि जिन घटनाओं का उल्लेख वैदिक तथा बौद्ध साहित्य नहीं करते हैं उसका विवरण जैन साहित्य में मिलता है।  जैन साहित्य को  आगम कहा जाता है।  आगम साहित्य में 10 अंग , 12 उप अंग तथा 10 प्राक्रीन है। आगम साहित्य किसी एक की रचना नहीं है बल्कि इसे एक लम्बे समयावधि में लिखा गया है।  जैन साहित्य की रचना 513 A.D. में या 526 A.D. वल्लभी में हुए।  जैन सम्मेलन में अंतिम रूप प्रदान किया गया। 

आगम साहित्य जैन धर्म धर्म के इतिहास तथ उसके दरसन की जानकारी  देता है।  भगवती सूत्र नमक जैन ग्रन्थ 600 B.C. के 16 महाजन पदों के उत्पत्ति तथा विकाश वर्ग जानकारी प्रदान करता है।  भद्र बहु चरित से हमें चन्द्रगुप्त मौर्य के हमें शासन काल के जानकारी मिलती है। 

इसी तरह हमयंद द्वारा रचित परिशिस्ट पर्वत से 12 वीं शताब्दी की रचना है। हरिम द्रशूरी  द्वारा रचित कथा कोष जिनसेन द्वारा रचित आदि पुराण तथा गुणभद्र द्वारा रचित उत्तर पुराण भी प्रमुख जैन स्रोत है। 
 
  • बौद्ध साहित्य:- By- Source Of Ancient Indian History

प्राचीन  भारत के  इतिहास के पूर्णनिर्माण में बौद्ध साहित्य की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है।  जिसमे पिटक , जातक तथा निकाय काफी महत्वपूर्ण है।  बौद्ध ग्रंथों में त्रिपिटक सबसे महत्वपूर्ण हैं – सुत्तपिटक , विनयपिटक तथा अभिध्धम  पिताक।

सूत पिताक में बौद्ध उपदेश तथा प्रवचनों का संग्रह मिलता है।  विनय पिताक में बौद्ध संघ से सबन्धित तथा आचार की शिक्षा गई है।  वही अभिध्धम पिताक बौद्ध धर्म दर्शान को बतलाता है। पालि  भाषा  में लिखे गए बौद्ध के काल क्वे सामाजिक , धार्मिक तथा आर्थिक , राजनितिक जीवन को जानने को जानने का प्रमुख स्रोत हैं। सूत पिटक  जिसमे बौद्ध धर्म के धार्मिक आदेशों का वर्णन किया गया है उसके पांच भाग हैं –
(१) दीर्घ निकाय (२) मज्झिम निकाय (३) सयुंक्त निकाय (४) अनुगुतर निकाय (५) खुद्दक निकाय 
बौद्ध के काल के 16 महाजन पदों का वर्णन सबसे पहले अंगुत्तर निकाय नमक ग्रन्थ में मिलते हैं।  जातक कथाओं में कहानियों का  संग्रह  मिलता है , इसमें गौतम बौद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियों का वर्णन किया  गया है । यद्यपि इसे इतिहास ग्रन्थ  सकता है फिर भी ये उस समय  तथा संस्कृति पर विशेष प्रकाश डालते हैं।
पाली भाषा में रचित दीपवंश तथा महानवंस से श्रीलंका (सीलोन) के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है, प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के प्रमुख स्रोत हैं , क्योंकि प्राचीन भारत में शासन करने वाले  विभिन राजवंशों का  उल्लेख किया गया है। संस्कृत लिखित ‘द्विव्य वदान’  लेखक हैं। भारत के इतिहास पर पर विशेस हैं।
इस  में लिखित गौतम बौद्ध की जीवनी ‘ललितविस्तर’ जिसमे इंडो -ग्रीक शासक मोनाण्डर बुध भिक्षु तथा  बिच दार्शनिक वार्तालाप का का विवरण  का विवरण है, प्राचीन भारत के राजनितिक तथा सांस्कृतिक इतिहास पर विस्तरित प्रकाश डालते हैं। मंजू श्री मुग़ल काल नमक बौद्ध ग्रन्थों से गुप्त राजाओं के बारे जानकारी प्राप्त होती है। 
लेकिन बौद्ध साहित्य को इतिहास का स्रोत  मानने से पहले हमें थोड़ा सावधान रहना पड़ेगा क्योंकि कई पद रचनाएँ पूर्वाग्रहों से ग्रासित  है।
 
Ancient History Of India In Hindi
Source Of Ancient Indian History (बुद्ध की छाया)
2 गैर धार्मिक स्रोत By- Source Of Ancient Indian History
प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के लिए विभिन्न प्रकर के इतर ग्रंथें मौजूद है जो संस्कृत , प्राकृत , पाली तथा तमिल आदि आदि भाषाओं में लिखे गए हैं। जहाँ धार्मिक स्रोत धर्म और दरसन की जानकारी देते हैं  वहीँ धर्म निरपेक्ष साहित्य राजनीयिक घटनाओं के साथ शेष प्रकाश डालते हैं। 
पाणिनी द्वारा रचित अष्टाध्यायी नाहक ग्रंथ प्रथम व्याकरण द्वारा हमें मौर्यों के पूर्व   काल की जानकारी प्राप्त होता है अष्टाध्यायी पर लिखी पतंजलि द्वारा रचित टिप्पणी महाभाष्य से हमें शुंग काल के विषय में जानकारी मिलती है। नाटककार विशाखा दत्त द्वारा रचित रुद्र्राक्षस तथा सोमनाथ द्वारा रचित कथा चरित सागर तथा क्षेमेन्द्र द्वारा रचित वृहत कथा मंजरी मौर्यकाल के इतिहास को जानने का प्रमुख साधन है।
कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र मौर्य इतिहास को जानने का सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। कौटिल्य को विष्णुगुप्त अथवा चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है।  कौटिल्य प्रथम मौर्या सम्राट चंद्र गुप्त मौर्य का संरक्षक तथा प्रधान मंत्री था।  यही कारण  है कि मौर्या काल के राजनीती , समाज तथा  अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में जो भी बातें लिखी गई है वो ज्यादा सटीक हैं। 
गुप्त शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार में महा कवि [संस्कृत] तथा नाटककार  कालिदास रहते थे।  उसकी रचना मालविका अग्निमित्र सुंग वंश पर विशेष प्रकाश डालता है। कमदंक द्वारा रचित नीतिशास्त्र तथा विशाखदत्त द्वारा रचित देवियन्द्रगुप्त शूद्रक द्वारा मरीचश्कटितकं तथा दण्डी द्वारा रचित दशकुमार चित्रित। 
गुप्त काल के इतिहास को जनन्ने का एक महत्वपूर्ण स्रोत दरबारी कवियों द्वारा लिखित जीवनचरित हैं। बाणभट द्वारा लिखित हर्षचरित  राजा हर्ष वर्धन के उपलब्धियों की व्याख्या करता है। इस तरह वाक्पति द्वारा रचित ‘गोडवाहो’ कन्नौज के राजा यशोवर्मन बारे विशेष जानकारी देता है। बबिल्हन द्वारा रचित ‘विक्रमादेवचरित’ चालुक्य राजा विक्रमादित्य के  बतलाता है। बंगाल के पल शासक रामपाल का जीवन चरित ‘रामचरित’ की रचना ससंध्याकर नंदी ने की है।
गुजरात के शासक जयसिंह की उपब्धियों का विवरण ‘कुमारपाल रचित’ में  लिखा गया है। इसी प्रकार नायक के पृथ्वीराज विजय तथा तथन चंदरबरदाई के पृथ्वी राज रासो  राजपूत राजा पृथ्वी राज चौहान की जानकारी मिलती है। प्राचीन तमिल साहित्य भी दक्षिण भारत के के प्राचीन  इतिहास को  महत्वपूर्ण  स्रोत है।  रचनाओं को ‘संगम साहित्य’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि  रचना 100 AD – 250 AD के  बिच कवियों तथा लेखक के सम्मेलनों में किया गया था। यहां तक दक्षिण भारत के राजनीतिक इतिहास की  है नन्दी ‘कफलबकम’ पल्लव शासक नंदी वर्मन  की उपलब्धियों की जानकारी देता है।
चोल शासक ‘कुलोग्तुंग’ द्वारा कलिंग पर आक्रमण करने की घटना का विवरण ‘कलिङ्गतुपर्ण’ में  मिलता है।  इसी प्रकार कानड़ भाषा में कवि पाम्पा  द्वारा रचित ‘विक्रमजून विजय’ तथा रन्न ‘गद्दा युद्ध’ विशेष महत्व के हैं। लेकिन प्राचीन भारत की मेक मात्र ऐतिहासिक रचना ‘राजतरंगिणी’ है जिसे कल्हण ने  लिखा था। इसमें मुख्या रूप से कश्मीर का इतिहास लिखा गया है। लेकिन ये प्राचीन भारत की विभिन्न  रूप से कश्मीर का इतिहास लिखा गया है। लेकिन ये प्राचीन भारत की विभिन्न  विशेष जानकारी देती है। उसने  इस ग्रन्थ कि रचना में सरकारी पूरा लेखों कीसहायता ली  है तथा यह रचना वस्तुनिष्ठ तथा पुर्वाग्रह से ग्रसित है। 
उपरोक्त साहित्य भारत के राजनितिक इतिहास के लेखन में ज्यादा मददगार नहीं है तथापि प्राचीन भारत के लोक जीवन तथा संस्कृति को समझने में ये ग्रन्थ काफी सहायक है। विशेष जानकारी देती है। उसने  इस ग्रन्थ कि रचना में सरकारी पूरा लेखों कीसहायता ली  है तथा यह रच वस्तुनिष्ठ तनाथा पुर्वाग्रह से ग्रसित है। 
 
उपरोक्त साहित्य भारत के राजनितिक इतिहास के लेखन में ज्यादा मददगार नहीं है तथापि प्राचीन भारत के लोक जीवन तथा संस्कृति को समझने में ये ग्रन्थ काफी सहायक है।
  1. विदेशी विवरण:- Ancient History Of India In Hindi

प्राचीन भारत में ग्रीश (यूनान), पश्चमी -एशिया तथा चीन से कई यात्री भ्रमण  कारने के लिए आये। इन विदेशी यात्रियों ने भारत को समझने में काफ़ी सहायक हैं।  विदेशी विवरण को मुख्यतः चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  • ग्रीक तथा रोमन विवरण 
  • चीनी विवरण 
  • तिबत्ती विवरण 

ग्रीक तथा रोमन विवरण:By- Source Of Ancient Indian History

भारत के बारे में लिखने वाला  प्रथम यूनानी हीरोडोटस था जिन्हे इतिहास का पिता कहा जाता है। उसने हिस्टोरिका की रचना की है। लेकिन उसने कभी भी भारत की यात्रा नहीं की थी।  उनका विवरण अन्य यात्रियों द्वारा जिये गये जानकारी पर आधारित है। टेसियस (T.C.S.) एक रोमन इतिहासकार थे जिसने भारत के बारे लिखा था।  

भारत के बारे में सबसे सबसे अधिक जानकारी सिकंदर के साथ आए इतिहासकार द्वारा दिया गया है।इन इतिहासकारों में  एशियन , जस्टिन , मेगास्थिनिग , प्लूटार्क , स्ट्राबो , डायोनिसस इत्यादि प्रमुख हैं। इनके विवरणों  से हमें सिकंदर के आक्रमण के समय  भारत तथा मौर्या राजाओं के बारे जानकारी प्राप्त होती है। इन रचनाओं में मेगास्थिनीज द्वारा लिखित इंडिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
यूनानी राजा सेल्युकस के कहने पर मेगस्थनीज ने मौर्य सम्राट चंद्र गुप्त मौर्य के दरबार में राजदूत का कार्य किया। लेकिन मेअसतानीज़ द्वारा लिखा गया कुछ विवरण जैसे -भारत में दास प्रथा नहीं थी, समाज सात वर्गों में विभाजित थी आदि उचित प्रतीत नहीं होता है। सायद ऐसा ही हो सकता है  क्योंकि हमें अभी तक इंडिका की मूल रचना नहीं मिली है। बाद के इतिहासकारों ने बाद में लिखी गयी अपनी रचनाओं में शामिल  है। “पेरिपल्स ऑफ़ एरिथियन सी” [Periples of Arithian Sea] भी एक  प्रमुख स्रोत है लेकिन इसका लेखक अज्ञात है।
इस ग्रन्थ में प्राचीन भारत के समुद्री मार्ग, बंदरगाहों तथा पश्च्मिं देशों के साथ व्यापार का सबन्ध वर्णित है।टॉलमी द्वारा रचित जियोग्राफी तथा प्लिनी द्वारा रचित ‘नेचुरल ‘ हिस्ट्री भी विद्वानों तथा इतिहास के वियार्थियों के लिए महत्वपूर्ण है।
 

चीनी विवरण:- Ancient History Of India In Hindi

अपनी यात्रा के दौरान लोगों ने जीवन तथा संस्कृति का विवरण प्रस्तुत किया है। फाह्यान पाँचवी शतबादी में भारत आया तथा उसने भारत के सामाजिक जीवन तथा बौद्ध धर्म के प्रमुख स्थालों  का वर्णन किया। इसी तरह व्हैन त्सांग सातवीं सतबादी में राजा हरसवर्धन के समय भारत आया , तथा न सिर्फ उसने धार्मिक , सांस्कृतिक इतिहास को लिखा बल्कि उसने राजनितिक घटनाओं का भी विस्तृत वर्णन किया।  उसने समकालीन शासकों जैसे हरसवर्धन , फ्लूकेशियन -II भास्कर वर्मन इत्यादि का उल्लेख किया।  

इत्सिंग ने सतविमन सदी में भारत का भ्रमण  किया तथा उसने प्रमुख बौद्ध शिक्षण संश्थाओं जैसे – Ancient History Of India In Hindi

तिब्बती विवरण:- तिब्बती लेखक लामकंग्युर तथा वांग्युर भी प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के स्रोत हैं। 

अरबी विवरण:- अरबी  वासियों ने भारत के बारे में आठवीं शादी में लिखना प्रारम्भ किया।  नौवीं शताब्दी में आरबी यात्री सुलेमान ने यात्रा की तथा पाल तथा प्रतिक्षर राजाओं के बारे में लिखा। 

आलमसऊदी भी भारत में 941-943 AD के बिच रहा तथा उसने राष्ट्रकृतों के बारे में लिखा। अरबी इतिहासकारों ने अलबरूनी उर्फ़ अबूरेहान बहुत प्रसिद्ध हैं। वे मुश्लिम आक्रामणकारी महमूद गज़नबी के साथ भारत आया तथा उसने अपनी रचना ‘किताब उलहिन्द’ ने भारत का वस्तुनिष्ठ अध्ययन प्रस्तुत किया। 712 में अरबों द्वारा भारत पर विजय की जानकारी [चचनामा] ग्रन्थ से मिलती है।By- Source Of Ancient Indian History
 
 

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