Kabir Ke Dohe In Hindi || कबीर के प्रशिद्ध दोहे 2022
Kabir Ke Dohe – कबीर हिंदी के ऐसे महान कवि हैं जिन्होंने अपने दोहा के जरिए भारतीय समाज की कुरीतियों को दूर करने में अथक प्रयास किया था। इनके जन्म के संबंध में इतिहासकारों का अनेक मत हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कबीरदास स्वामी रामानंद के आशीर्वाद से एक विधवा ब्राम्हण महिला के कोख से जन्म लिया था। ब्राम्हण महिला ने नवजात कबीरदास को समाज के लोकलज्जा के डर से काशी के लहरतारा नामक तालाब के किनारे फेंक दिया था।
1. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी समय के बारे में कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो, कुछ ही समय में जब जीवन ख़त्म हो जायेगा फिर तुम कुछ नहीं कर पाओगे।
2. लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि अभी राम नाम की लूट मची है, अभी तुम भगवान का जितना नाम लेना चाहो ले लो नहीं तो फिर समय निकल जाने पर अर्थात मर जाने के बाद पछताओगे कि मैंने तब भगवान राम की पूजा क्यों नहीं की।
3. माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कुछ भी माँगना मरने के बराबर है इसलिए किसी से भी भीख मत मांगो. सतगुरु जी कहते हैं कि मांगने से मर जाना बेहतर है अर्थात अपने पुरुषार्थ से स्वयं चीजों को प्राप्त करो, उसे किसी से मांगो मत।
4. तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय ।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कभी भी एक छोटे से तिनके की निंदा मत करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है. अगर कभी वह तिनका उड़कर आपके आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है।
5. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि मन में धीरज रखने से ही सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से भी सींचने लगे फिर भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा।
6. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन में जो है वह हलचल शांत नहीं होती. कबीर जी ऐसे व्यक्ति को सलाह देते है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलने की सोचे।
7. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि किसी भी सज्जन या साधु की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को हमें समझना चाहिए. हमेशा तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का।
8. दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोषों को देखता है तो इन्हें देखकर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।
9. दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में व्यक्ति को मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है. यह मानव शरीर उसी तरह है जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।
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10. कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी अपने जीवन में इस संसार में आकर बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और इस संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !
11. हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी इन दोनों में से कोई सत्य को न जान पाया।
12. पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात।।
हिन्दी अर्थ : कबीर जी कहते है कि जैसे पानी के बुलबुले है, ठीक इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है. जैसे सुबह होते ही सारे तारे छिप जाते हैं, वैसे ही यह शरीर भी एक दिन नष्ट हो जाएगा।
13. कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार के व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है. सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है।
14. कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी।
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो ? ज्ञान के प्रकाश को हासिल कर प्रभु का नाम लो. सजग होकर प्रभु का ध्यान करो. वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है, जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं ? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते ?
15. आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत।
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत।।
हिन्दी अर्थ : देखते ही देखते सब भले दिन – अच्छा समय बीतता चला गया. तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई, प्यार नहीं किया अब समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा ? पहले जागरूक न थे- ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करे और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल बर्बाद कर जाएं।।
16. रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय।।
हिन्दी अर्थ : रात नींद में नष्ट कर दी और सोते रहे, दिन में भोजन करने से फुर्सत नहीं मिली यह मनुष्य जन्म हीरे के समान ही बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा ? बस एक कौड़ी।
17. दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान को याद करते हैं पर सुख में कोई भी नहीं करता. अगर सुख में भी भगवान को याद किया जाए तो फिर दुःख हो ही क्यों !
18. साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि हे भगवान ! तुम मुझे इतना दो कि जिसमे बस मेरा गुजारा चल जाये, मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानो को भी भोजन करा सकूँ।
19. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैं इस दुनिया में बुराई को खोजने चला तो मुझे कोई भी बुरा न मिला. जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा तो कोई नहीं है।
20. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
हिन्दी अर्थ : बड़ी – बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मौत के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि अगर कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।
21. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार – सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में ऐसे सज्जन लोगो की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है. जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।
22. तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना तो सरल है, किन्तु मन को योगी बनाना कुछ ही व्यक्तियों का काम है. अगर मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।
23. कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में भी काम आए. सिर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते हुए तो किसी को नहीं देखा।
24. माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है और न मन. शरीर न जाने कितनी बार मर चुका होता है पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं।
25. मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी मनुष्य मात्र को समझाते हुए कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो, उन्हें तुम अपने बलबूते पर पूर्ण नहीं कर सकते. यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई नही खाएगा।
26. जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैं अपने अहंकार में डूबा था तब प्रभु को न देख पाता था, परन्तु जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सारा अन्धकार मिट गया. ज्ञान की ज्योति से अहंकार लगातार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।
27. कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन।
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया. कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता. आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है।
28. कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि समुद्र की लहरों में मोती आकर बिखर गए. बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है. इसका अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व सिर्फ उसका जानकार ही जान पाता है।
29. जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो उस गुण की कीमत होती है. पर जब ऐसा गाहक नहीं मिल पाता, तब वह गुण कौड़ी के भाव चला जाता है।
30. कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि हे मानव ! तू क्यों गर्व करता है ? यह काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है. मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर भी तुझे मार डाले।
31. जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जो कोशिश करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ भी नहीं पाते।
32. बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
हिन्दी अर्थ : अगर कोई व्यक्ति सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है. इसलिए वह पहले ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।
33. अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ठीक है. जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।
34. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय ।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए. क्योंकि वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियों को बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।
35. हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास ।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास ।।
हिन्दी अर्थ : यह मानव का नश्वर शरीर अंत समय में लकड़ी की तरह जलता है और केश घास की तरह जल उठते हैं. सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से बहुत भर जाता है।
36. जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं ।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है, वह अस्त भी होगा. जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह पक्का जाएगा।
37. झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद ।
खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि अरे ओ जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है ? देख तेरा यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा हुआ है।
38. ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस ।
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर जी सांसारिक लोगो के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता।
39. संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत ।
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को कभी नहीं छोड़ता. जिस तरह चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता को नहीं छोड़ता।
40. अबुध सुबुध सुत मातु पितु, सबहिं करै प्रतिपाल ।
अपनी ओर निबाहिये, सिख सुत गहि निज चाल ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि मात-पिता निर्बुधि-बुद्धिमान सभी पुत्रों का प्रतिपाल करते हैं। पुत्र कि भांति ही शिष्य को गुरुदेव अपनी मर्यादा की चाल से मिभाते हैं।
41. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय ।।
हिन्दी अर्थ : मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो।
42. कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी ने इस दोहे में जीवन में गुरु का क्या महत्व हैं वो बताया हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य तो अँधा हैं सब कुछ गुरु ही बताता हैं अगर ईश्वर नाराज हो जाए तो गुरु एक डोर हैं जो ईश्वर से मिला देती हैं लेकिन अगर गुरु ही नाराज हो जाए तो कोई डोर नही होती जो सहारा दे।
43. करै दूरी अज्ञानता, अंजन ज्ञान सुदये ।
बलिहारी वे गुरु की हँस उबारि जु लेय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि ज्ञान का अंजन लगाकर शिष्य के अज्ञान दोष को दूर कर देते हैं। उन गुरुजनों की प्रशंसा है, जो जीवो को भव से बचा लेते हैं।
44. कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह ।
देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं जब तक देह है तू दोनों हाथों से दान किए जा। जब देह से प्राण निकल जाएगा। तब न तो यह सुंदर देह बचेगी और न ही तू फिर तेरी देह मिट्टी की मिट्टी में मिल जाएगी और फिर तेरी देह को देह न कहकर शव कहलाएगा।
45. कहै कबीर तजि भरत को, नन्हा है कर पीव ।
तजि अहं गुरु चरण गहु, जमसों बाचै जीव ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि भ्रम को छोडो, छोटा बच्चा बनकर गुरु-वचनरूपी दूध को पियो । इस प्रकार अहंकार त्याग कर गुरु के चरणों की शरण ग्रहण करो, तभी जीव से बचेगा।
46. कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय ।
जनम-जनम का मोरचा, पल में डारे धोया ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। जन्म – जन्मान्तरो की बुराई गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते हैं।
47. केते पढी गुनि पचि मुए, योग यज्ञ तप लाय ।
बिन सतगुरु पावै नहीं, कोटिन करे उपाय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि कितने लोग शास्त्रों को पढ-गुन और योग व्रत करके ज्ञानी बनने का ढोंग करते हैं, परन्तु बिना सतगुरु के ज्ञान एवं शांति नहीं मिलती, चाहे कोई करोडों उपाय करे।
48. गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय ।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि व्यवहार में भी साधु को गुरु की आज्ञानुसार ही आना जाना चाहिए। सद् गुरु कहते हैं कि संत वही है जो जन्म-मरण से पार होने के लिए साधना करता है।
49. गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट ।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार – मारकर और गढ़-गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं।
50. गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं ।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है किगुरु को अपना सिर मुकुट मानकर, उसकी आज्ञा मैं चलो। कबीर साहिब कहते हैं, ऐसे शिष्य-सेवक को तनों लोकों से भय नहीं है।
51. गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास ने यहाँ गुरु के स्थान का वर्णन किया हैं वे कहते हैं कि जब गुरु और स्वयं ईश्वर एक साथ हो तब किसका पहले अभिवादन करे अर्थात दोनों में से किसे पहला स्थान दे? इस पर कबीर कहते हैं कि जिस गुरु ने ईश्वर का महत्व सिखाया हैं जिसने ईश्वर से मिलाया हैं वही श्रेष्ठ हैं क्यूंकि उसने ही तुम्हे ईश्वर क्या हैं बताया हैं और उसने ही तुम्हे इस लायक बनाया हैं कि आज तुम ईश्वर के सामने खड़े हो।
52. गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त ।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि गुरु में और पारस-पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं। पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है।
53. गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कुछ नाहिं ।
उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि गुरु की मूर्ति आगे खड़ी है, उसमें दूसरा भेद कुछ मत मानो। उन्हीं की सेवा बंदगी करो, फिर सब अंधकार मिट जायेगा।
54. गुरु मूरति गति चन्द्रमा, सेवक नैन चकोर ।
आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि गुरु की मूरति चन्द्रमा के समान है और सेवक के नेत्र चकोर के तुल्य हैं। अतः आठो पहर गुरु-मूरति की ओर ही देखते रहो।
56. गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान ।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान – दान गुरु ने दे दिया।
57. गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान ।
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है किअपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो। परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार से बह गये, गुरुपद-पोत में न लगे।
58. गुरु सो प्रीतिनिवाहिये, जेहि तत निबहै संत ।
प्रेम बिना ढिग दूर है, प्रेम निकट गुरु कंत ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जैसे बने वैसे गुरु-सन्तो को प्रेम का निर्वाह करो। निकट होते हुआ भी प्रेम बिना वो दूर हैं, और यदि प्रेम है, तो गुरु-स्वामी पास ही हैं।
59. चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर ने अपने इस दोहे में बहुत ही उपयोगी और समझने योग्य बात लिखी हैं कि इस दुनियाँ में जिस व्यक्ति को पाने की इच्छा हैं उसे उस चीज को पाने की ही चिंता हैं, मिल जाने पर उसे खो देने की चिंता हैं वो हर पल बैचेन हैं जिसके पास खोने को कुछ हैं लेकिन इस दुनियाँ में वही खुश हैं जिसके पास कुछ नहीं, उसे खोने का डर नहीं, उसे पाने की चिंता नहीं, ऐसा व्यक्ति ही इस दुनियाँ का राजा हैं।
60. जग में युक्ति अनूप है, साधु संग गुरु ज्ञान ।
तामें निपट अनूप है, सतगुरु लगा कान ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि दुखों से छूटने के लिए संसार में उपमारहित युक्ति संतों की संगत और गुरु का ज्ञान है। उसमे अत्यंत उत्तम बात यह है कि सतगुरु के वचनों पार कान दो।
61. जनीता बुझा नहीं बुझि, लिया नहीं गौन ।
अंधे को अंधा मिला, राह बतावे कौन ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि विवेकी गुरु से जान-बुझ-समझकर परमार्थ-पथ पर नहीं चला। अंधे को अंधा मिल गया तो मार्ग बताये कौन।
62. जाका गुरु है आँधरा, चेला खरा निरंध ।
अन्धे को अन्धा मिला, पड़ा काल के फन्द ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जिसका गुरु ही अविवेकी है उसका शिष्य स्वय महा अविवेकी होगा। अविवेकी शिष्य को अविवेकी गुरु मिल गया, फलतः दोनों कल्पना के हाथ में पड़ गये।
63. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।
हिन्दी अर्थ : किसी भी व्यक्ति की जाति से उसके ज्ञान का बोध नहीं किया जा सकता, किसी सज्जन की सज्नता का अनुमान भी उसकी जाति से नहीं लगाया जा सकता इसलिए किसी से उसकी जाति पूछना व्यर्थ है उसका ज्ञान और व्यवहार ही अनमोल है। जैसे किसी तलवार का अपना महत्व है पर म्यान का कोई महत्व नहीं, म्यान महज़ उसका उपरी आवरण है जैसे जाति मनुष्य का केवल एक शाब्दिक नाम।
64. जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ।।
हिन्दी अर्थ : जीवन में जो लोग हमेशा प्रयास करते हैं वो उन्हें जो चाहे वो पा लेते हैं जैसे कोई गोताखोर गहरे पानी में जाता है तो कुछ न कुछ पा ही लेता हैं। लेकिन कुछ लोग गहरे पानी में डूबने के डर से यानी असफल होने के डर से कुछ करते ही नहीं और किनारे पर ही बैठे रहते हैं।
65. जेही खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव ।
कहैं कबीर सुन साधवा, करू सतगुरु की सेवा ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जिस मुक्ति को खोजते ब्रह्मा, सुर-नर मुनि और देवता सब थक गये। ऐ सन्तो, उसकी प्राप्ति के लिए सद् गुरु की सेवा करो।
66. जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर ।
एक पलक बिखरे नहीं, जो गुण होय शारीर ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि यदि गुरु वाराणसी में निवास करे और शिष्य समुद्र के निकट हो, परन्तु शिष्ये के शारीर में गुरु का गुण होगा, जो गुरु लो एक क्षड भी नहीं भूलेगा।
67. ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति विश्वास ।
गुरु सेवा ते पाइए, सद् गुरु चरण निवास ।।
अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि ज्ञान, सन्त-समागम, सबके प्रति प्रेम, निर्वासनिक सुख, दया, भक्ति सत्य-स्वरुप और सद् गुरु की शरण में निवास – ये सब गुरु की सेवा से निलते हैं।
68. डूबा औधर न तरै, मोहिं अंदेशा होय ।
लोभ नदी की धार में, कहा पड़ा नर सोय ।।
अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि कुधर में डूबा हुआ मनुष्य बचता नहीं । मुझे तो यह अंदेशा है कि लोभ की नदी-धारा में ऐ मनुष्यों तुम कहां पड़े सोते हो।
69. तबही गुरु प्रिय बैन कहि, शीष बढ़ी चित प्रीत ।
ते कहिये गुरु सनमुखां, कबहूँ न दीजै पीठ ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि शिष्य के मन में बढ़ी हुई प्रीति देखकर ही गुरु मोक्षोपदेश करते हैं। अतः गुरु के समुख रहो, कभी विमुख मत बनो।
70. तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ।।
अर्थ : कबीर दास कहते हैं जैसे धरती पर पड़ा तिनका आपको कभी कोई कष्ट नहीं पहुँचाता लेकिन जब वही तिनका उड़ कर आँख में चला जाये तो बहुत कष्टदायी हो जाता हैं अर्थात जीवन के क्षेत्र में किसी को भी तुच्छ अथवा कमजोर समझने की गलती ना करे जीवन के क्षेत्र में कब कौन क्या कर जाये कहा नहीं जा सकता।
71. धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर ।
अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि धर्म (परोपकार, दान सेवा) करने से धन नहीं घटना, देखो नदी सदैव बहती रहती है, परन्तु उसका जल घटता नहीं। धर्म करके स्वयं देख लो।
72. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस दुनियाँ में जो भी करना चाहते हो वो धीरे-धीरे होता हैं अर्थात कर्म के बाद फल क्षणों में नहीं मिलता जैसे एक माली किसी पौधे को जब तक सो घड़े पानी नहीं देता तब तक ऋतू में फल नही आता। धीरज ही जीवन का आधार हैं, जीवन के हर दौर में धीरज का होना जरुरी है फिर वह विद्यार्थी जीवन हो, वैवाहिक जीवन हो या व्यापारिक जीवन।
73. पंडित यदि पढि गुनि मुये, गुरु बिना मिलै न ज्ञान ।
ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है, सत्त शब्द परमान ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि बड़े-बड़े विद्व।न शास्त्रों को पढ-गुनकर ज्ञानी होने का दम भरते हैं, परन्तु गुरु के बिना उन्हें ज्ञान नही मिलता। ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती।
74. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।
हिन्दी अर्थ : उच्च ज्ञान प्राप्त करने पर भी हर कोई विद्वान् नहीं हो जाता। अक्षर ज्ञान होने के बाद भी अगर उसका महत्त्व ना जान पाए, ज्ञान की करुणा को जो जीवन में न उतार पाए तो वो अज्ञानी ही है लेकिन जो प्रेम के ज्ञान को जान गया, जिसने प्यार की भाषा को अपना लिया वह बिना अक्षर ज्ञान के विद्वान हो जाता है।
75. बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ।।
हिन्दी अर्थ : कबीरदास जी ने बहुत ही अनमोल शब्द कहे हैं कि यूँही बड़ा कद होने से कुछ नहीं होता क्यूंकि बड़ा तो खजूर का पेड़ भी हैं लेकिन उसकी छाया राहगीर को दो पल का सुकून नही दे सकती और उसके फल इतने दूर हैं कि उन तक आसानी से पहुंचा नहीं जा सकता। इसलिए कबीर दास जी कहते हैं ऐसे बड़े होने का कोई फायदा नहीं, दिल से और कर्मो से जो बड़ा होता हैं वही सच्चा बड़प्पन कहलाता हैं।
76. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।
हिन्दी अर्थ : जब मेने इन संसार में बुराई को ढूढा तब मुझे कोई बुरा नहीं मिला जब मेने खुद का विचार किया तो मुझसे बड़ी बुराई नहीं मिली। दुसरो में अच्छा बुरा देखने वाला व्यक्ति सदैव खुद को नहीं जनता। जो दुसरो में बुराई ढूंढते है वास्तव में वहीँ सबसे बड़ी बुराई है।
77. बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि ।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि ।।
हिन्दी अर्थ : जिसे बोल का महत्व पता है वह बिना शब्दों को तोले नहीं बोलता। कहते है कि कमान से छुटा तीर और मुंह से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते इसलिए इन्हें बिना सोचे-समझे इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जीवन में वक्त बीत जाता है पर शब्दों के बाण जीवन को रोक देते है। इसलिए वाणि में नियंत्रण और मिठास का होना जरुरी है।
78. मनहिं दिया निज सब दिया, मन से संग शरीर ।
अब देवे को क्या रहा, यो कथि कहहिं कबीर ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि यदि अपना मन तूने गुरु को दे दिया तो जानो सब दे दिया, क्योंकि मन के साथ ही शरीर है, वह अपने आप समर्पित हो गया। अब देने को रहा ही क्या है।
79. माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ।।
हिन्दी अर्थ : बहुत ही बड़ी बात को कबीर दास जी ने बड़ी सहजता से कहा दिया। उन्होंने कुम्हार और उसकी कला को लेकर कहा हैं कि मिट्टी एक दिन कुम्हार से कहती हैं कि तू क्या मुझे कूट कूट कर आकार दे रहा हैं एक दिन आएगा जब तू खुद मुझ में मिल कर निराकार हो जायेगा अर्थात कितना भी कर्मकांड कर लो एक दिन मिट्टी में ही समाना हैं।
80. माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ।।
हिन्दी अर्थ : कविवर कबीरदास कहते हैं मनुष्य की इच्छा, उसका एश्वर्य अर्थात धन सब कुछ नष्ट होता हैं यहाँ तक की शरीर भी नष्ट हो जाता हैं लेकिन फिर भी आशा और भोग की आस नहीं मरती।
81. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि लोग सदियों तक मन की शांति के लिये माला हाथ में लेकर ईश्वर की भक्ति करते हैं लेकिन फिर भी उनका मन शांत नहीं होता इसलिये कवी कबीर दास कहते हैं। हे मनुष्य इस माला को जप कर मन की शांति ढूंढने के बजाय तू दो पल अपने मन को टटौल, उसकी सुन देख तुझे अपने आप ही शांति महसूस होने लगेगी।
82. यह सतगुरु उपदेश है, जो माने परतीत ।
करम भरम सब त्यागि के, चलै सो भव जलजीत ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि यही सतगुरु का यथार्थ उपदेश है, यदि मन विश्वास करे, सतगुरु उपदेशानुसार चलने वाला करम भ्रम त्याग कर, संसार सागर से तर जाता है।
83. या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत ।
गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत ।।
हिन्दी अर्थ : इस संसार का झमेला दो दिन का है अतः इससे मोह सम्बन्ध न जोड़ो। सद्गुरु के चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुखज देने वाले हैं।
84. राजा की चोरी करे, रहै रंक की ओट ।
कहै कबीर क्यों उबरै, काल कठिन की चोट ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि कोई राजा के घर से चोरी करके दरिद्र की शरण लेकर बचना चाहे तो कैसे बचेगा| इसी प्रकार सद् गुरु से मुख छिपाकर, और कल्पित देवी-देवतओं की शरण लेकर कल्पना की कठिन चोट से जीव कैसे बचेगा।
85. सतगुरु खोजे संत, जीव काज को चाहहु ।
मेटो भव के अंक, आवा गवन निवारहु ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि ऐ संतों, यदि अपने जीवन का कल्याण चाहो, तो सतगुरु की खोज करो और भव के अंक अर्थात छाप, दाग या पाप मिटाकर, जन्म-मरण से रहित हो जाओ।
86. सतगुरु तो सतभाव है, जो अस भेद बताय ।
धन्य शिष धन भाग तिहि, जो ऐसी सुधि पाय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि सद् गुरु सत्ये-भाव का भेद बताने वाला है। वह शिष्य धन्य है तथा उसका भाग्य भी धन्य है जो गुरु के द्वारा अपने स्वरुप की सुधि पा गया है।
87. सतगुरु मिला जु जानिये, ज्ञान उजाला होय ।
भ्रम का भाँडा तोड़ी करि, रहै निराला होय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि सद् गुरु मिल गये। यह बात तब जाने जानो, जब तुम्हारे हिर्दे में ज्ञान का प्रकाश हो जाये, भ्रम का भंडा फोडकर निराले स्वरूपज्ञान को प्राप्त हो जाये।
88. सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड ।
तीन लोक न पाइये, अरु इकइस ब्रह्मणड ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि सात द्वीप, नौ खण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रह्मणडो में सद् गुरु के समान हितकारी आप किसी को नहीं पायेंगे।
89. सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते।
90. साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास कहते हैं कि प्रभु इतनी कृपा करना कि जिसमे मेरा परिवार सुख से रहे और ना मै भूखा रहू और न ही कोई सदाचारी मनुष्य भी भूखा ना सोये। यहाँ कवी ने परिवार में संसार की इच्छा रखी हैं।
91. साबुन बिचारा क्या करे, गाँठे वाखे मोय।
जल सो अरक्षा परस नहिं, क्यों कर ऊजल होय ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि साबुन बेचारा क्या करे,जब उसे गांठ में बांध रखा है। जल से स्पर्श करता ही नहीं फिर कपडा कैसे उज्जवल हो। भाव-ज्ञान की वाणी तो कंठ कर ली, परन्तु विचार नहीं करता, तो मन कैसे शुद्ध हो।
92. सुख में सुमिरन सब करै दुख में करै न कोई ।
जो दुख में सुमिरन करै तो दुख काहे होई ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं जब मनुष्य जीवन में सुख आता हैं तब वो ईश्वर को याद नहीं करता लेकिन जैसे ही दुःख आता हैं वो दौड़ा दौड़ा ईश्वर के चरणों में आ जाता हैं फिर आप ही बताये कि ऐसे भक्त की पीड़ा को कौन सुनेगा?
93. सोई सोई नाच नचाइये, जेहि निबहे गुरु प्रेम ।
कहै कबीर गुरु प्रेम बिन, कितहुं कुशल नहिं क्षेम ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है किअपने मन-इन्द्रियों को उसी चाल में चलाओ, जिससे गुरु के प्रति प्रेम बढता जये। कबीर साहिब कहते हैं कि गुरु के प्रेम बिन, कहीं कुशलक्षेम नहीं है ।
जब भी हम दोहों के बारे में सुनते है तो सबसे पहले ही Kabir Ke Dohe ध्यान आते है. कबीर दास का साहित्य में योगदान बेहद ही अनमोल है जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता. कबीर के दोहे (Kabir Ke Dohe) , भजन , एवम् अनेक रचनाये है जो हम सभी के जीवन में उपयोगी है।
94. साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय ।
सार–सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी का कहना है की व्यक्ति को सूप की तरह होना चाहिये जिस प्रकार सूप अपने अन्दर अनाज तो रख लेता है लेकिन अन्य चीजो को बाहर कर देता है. यानी हमारे चारो ओर गंदगी है तो उस गंदगी से हम अपने मन को गंदा क्यों करे , हमे अपने मन को हमेशा साफ़ रखना चाहिये.
95. तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।
हिन्दी अर्थ : हम सभी लोग प्रतिदिन अपने तन को तो साफ़ करते है यानी मुह हाथ धोते नहाते तो हैं लेकिन अपने मन को साफ़ करना हमेशा भूल जाते है. जो व्यक्ति अपने मन को साफ़ रखता है वही हर मायने में सच्चा इंसान बन पाता है.
96. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ।
हिन्दी अर्थ : कबीरा कहते है , मोती और लकड़ी की यह माला फेरते फेरते तो सालों बीत गये लेकिन मन पर जमी मैल आज तक नही हटी।
97. नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है , ऐसे नहाने धोने से क्या फायदा है जो मन साफ़ नहीं हो. मछली भी हमेशा पानी में रहती है लेकिन कितना भी उसे धो लेने पर उसकी बदबू खत्म नही होती।
98. ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।
हिन्दी अर्थ : दास जी का कहना है , जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में कभी अच्छे लोगो की संगति नहीं की या कभी कोई अच्छा काम नही किया उसका जीवन बेकार है या यूँ कहे , प्रेम के बिना मनुष्य का जीवन पशु की भांति है. जो व्यक्ति सच्चे मन से भक्ति नहीं करता उसके हृदय में कभी प्रभु का वास नहीं हो सकता।
99. माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी मिटटी और कुम्हार के उधाहरण को लेकर समझाते है की , मिटटी कुम्हार से कहती है तुम आज मुझे इस प्रकार अपने सांचे में ढालने की कोशिश कर रहे हो लेकिन एक दिन ऐसा भी आयेगा जब तुम खुद भी इस मिटटी में ही मिल जाओगे , मैं तुम्हे रौंदूगी. यानी , हर समय हम जो अपनी अन्य बातो को लेकर चिंता करते रहते है , लालच करते है वो सब व्यर्थ ही है हमारे साथ कुछ नही जाना है और हमारे पीछे सिर्फ हमारे कर्म ही रह जायेगे.
100.कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये ।
हिन्दी अर्थ : कबीरा कहते है , जब हम पैदा होते हैं तो हमे रोता देख यह दुनिया ख़ुशी मनाती है. अपनी जिन्दगी में ऐसे काम करो की जब तुम जाओ तो तुम हंस रहे हो और दुनिया तम्हे खोने का दुःख मना रही हो।
101. जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
हिन्दी अर्थ : जीवन में जो लोग अपने काम को लेकर इमानदारी से प्रयास करते रहते है वह अपनी मंजिल को पाने में एक न एक दिन सफल हो ही जाते है. जिस प्रकार गोताखोर गहरे पानी में जाता है तो कुछ न कुछ लेकर ही वापिस आता है. ऐसे ही प्रयास करते रहना ही सफलता की ओर पहला कदम है।
102. दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है की , मनुष्य की प्रकृति होती है की वह दूसरो के दोष देख कर हंसता है लेकिन अपने अन्दर छुपे उन दोषों को वह कभी नही देखता जिनका कोई अंत नहीं है. इसलिए दूसरो के बारे में कुछ भी कहने या टिप्पणी करने से पहले हमे अपने अन्दर भी झांकना चाहिये।
103. जाति न पूछो साधू की, पुच लीजिए ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है , किसी भी सज्जन या फिर ज्ञानी व्यक्ति से उसकी जाती पूछने से अच्छा है उस से ज्ञान की बाते कीजिये उसके ज्ञान को समझिये. मैदान में तलवार की कीमत होती है उसपर चड़े खोल को कोई नही पूछता।
104. धीरे – धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी अपनी इन पक्तियों के माध्यम से कहना चाहते है की , धीरज रखने से सभी काम का फल मिलता है जिस प्रकार आम के पेड़ को रोज पानी देने और आम की राह तकने से उसी समय फल नही आ जाते उसी प्रकार सभी परिणाम हमे सही समय पर ही हासिल होते है।
105. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है , इस दुनिया में जब मै बुरे को ढूँढने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला लेकिन जब मैंने अपने अन्दर झाँका तो मुझे मेरे अन्दर की कमियाँ दिखाई दी और एहसास हुआ की मुझसे बुरा और कोई मिलेगा ही नही।
106. बार-बार तोसों कहा, सुन रे मनुवा नीच,
बनजारे का बैल ज्यों, पैडा माही मीच।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है , हे लालची मनुष्य तुझ से मै बार बार कहता हूँ क्यों इन सभी झंझटो में पड़ा है जिस प्रकार व्यापारी का बैल बीच रस्ते में मर जाता है उसी प्रकार एक दिन तू भी अचानक मर जायेगा.
107. जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय,
जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है , मनुष्य जैसा अन्न खायेगा वैसा हो जायेगा यानी मनुष्य की जैसी संगति होगी वह उसी प्रकार ढलता चला जयेगा. इसलिए अपनी संगती और आस पास के वातावरण को हमेशा ही अच्छा रखे ताकि मन शुद्ध रहे ।
108. हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मरे, मरम न जाना कोई।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि हिन्दुओं को राम प्यारा है और मुसलमानों (तुर्क) को रहमान| इसी बात पर वे आपस में झगड़ते रहते है लेकिन सच्चाई को नहीं जान पाते।
109. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो| जीवन बहुत छोटा होता है अगर पल भर में समाप्त हो गया तो क्या करोगे।
110. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि हमेशा धैर्य से काम लेना चाहिए| अगर माली एक दिन में सौ घड़े भी सींच लेगा तो भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेंगे।
111. निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
हिन्दी अर्थ : कबीर जी कहते है कि निंदा करने वाले व्यक्तियों को अपने पास रखना चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्ति बिना पानी और साबुन के हमारे स्वभाव को स्वच्छ कर देते है।
112. माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख,
माँगन ते मरना भला, यह सतगुरु की सीख।
हिन्दी अर्थ : कबीरदास जी कहते कि माँगना मरने के समान है इसलिए कभी भी किसी से कुछ मत मांगो।
113. साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय,
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते कि हे परमात्मा तुम मुझे केवल इतना दो कि जिसमे मेरे गुजरा चल जाये| मैं भी भूखा न रहूँ और अतिथि भी भूखे वापस न जाए।
114. दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय,
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।
हिन्दी अर्थ : कबीर कहते कि सुख में भगवान को कोई याद नहीं करता लेकिन दुःख में सभी भगवान से प्रार्थना करते है। अगर सुख में भगवान को याद किया जाये तो दुःख क्यों होगा।
115. तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कभी भी पैर में आने वाले तिनके की भी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकिं अगर वही तिनका आँख में चला जाए तो बहुत पीड़ा होगी।
116. साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं,
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते कि साधू हमेशा करुणा और प्रेम का भूखा होता और कभी भी धन का भूखा नहीं होता। और जो धन का भूखा होता है वह साधू नहीं हो सकता।
117. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
हिन्दी अर्थ : कबीर जी कहते है कि कुछ लोग वर्षों तक हाथ में लेकर माला फेरते है लेकिन उनका मन नहीं बदलता अर्थात् उनका मन सत्य और प्रेम की ओर नहीं जाता| ऐसे व्यक्तियों को माला छोड़कर अपने मन को बदलना चाहिए और सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए।
118. जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय,
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है अगर हमारा मन शीतल है तो इस संसार में हमारा कोई बैरी नहीं हो सकता| अगर अहंकार छोड़ दें तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है|
119. जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय,
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि हम जैसा भोजन करते है वैसा ही हमारा मन हो जाता है और हम जैसा पानी पीते है वैसी ही हमारी वाणी हो जाती है।
120. कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार,
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।
हिन्दी अर्थ : बुरे वचन विष के समान होते है और अच्छे वचन अमृत के समान लगते है।
121. जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
हिन्दी अर्थ : जो जितनी मेहनत करता है उसे उसका उतना फल अवश्य मिलता है| गोताखोर गहरे पानी में जाता है तो कुछ ले कर ही आता है, लेकिन जो डूबने के डर से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं वे कुछ नहीं कर पाते हैं।
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